प्रकाशन परिचय

सर्व सेवा संघ प्रकाशन परिचय

दुनियाभर में, हर तरह की क्रान्ति और आन्दोलन ने अपना साहित्य बनाया है और उसे जन-जन तक पहुँचाने का पराक्रम भी किया है। गांधी तो इस बारे में इतने सावधान थे कि अनगिनत पत्र और बयान लिखने, साक्षात्कार आदि देने के बाद भी कई भाषाओं में अपनी पत्रिका निकालते थे। उनसे ही हमने यह समझा-सीखा कि अगर अहिंसक क्रान्ति करनी है तो लोकशिक्षण उसका सबसे अनिवार्य पहलू होगा और उसके लिए अपना प्रकाशन होना जरूरी है।

इसलिए विनोबा जब भूदान आंदोलन की अपनी अप्रतिम क्रान्ति के एक-एक कदम तैयार कर रहे थे और उसके एक-एक पन्ने दुनिया के सामने खोल रहे थे, तब यह महसूस हुआ कि अहिंसक वैचारिक क्रान्ति के इन पन्नों को समेटने की बेहद जरूरत है। इसी में से सर्व सेवा संघ प्रकाशन का जन्म हुआ।

  • विनोबाजी की भूदान पदयात्रा सन् 1952 से 1954-55 तक उत्तर प्रदेश और बिहार में चल रही थी। तभी वर्धा में यह सोचा गया कि गाँवों में सर्वोदय-विचार पहुँचाना है तो अपना प्रकाशन जरूरी है। इस कार्य हेतु वाराणसी उपयुक्त स्थान प्रतीत हुआ क्योंकि प्रकाशन तथा संपादन की दृष्टि से वाराणसी में काम उत्तम और सस्ता हो सकता है। इस योजना के कार्यान्वयन की दृष्टि से श्री राधाकृष्णजी बजाज ने श्री जमनालाल जैन को वाराणसी आने के लिए प्रोत्साहित किया। श्री जमनालाल जैन मई 1955 में वाराणसी आये।
  • प्रारम्भ में वाराणसी से सर्वोदय-विचार की छोटी-छोटी पुस्तकें प्रकाशित होती रहीं। प्रकाशन विभाग के अध्यक्ष राधाकृष्णजी बजाज ने प्रकाशन-कार्य का विस्तार कर इसमें प्राण-संचार किया। विनोबाजी के प्रवचनों की पुस्तकें तैयार होने लगीं। उन्हीं दिनों ‘गीता प्रवचन’ और ‘स्थितप्रज्ञ दर्शन’ विनोबाजी की दोनों कृतियों का प्रकाशन सर्व सेवा संघ ने अपने हाथ में ले लिया। पदयात्रा में इन पुस्तकों का प्रचार होने लगा। धीरे-धीरे काम बढ़ने लगा। दादा धर्माधिकारी के भाषण और शिविर होने लगे। उनकी ‘सर्वोदय दर्शन’ और ‘अहिंसक क्रान्ति की प्रक्रिया’ जैसी बड़ी एवं वैचारिक पुस्तकें सर्व सेवा संघ प्रकाशन ने प्रकाशित की। विनोबाजी के पूर्व सहयोगी, झण्डा सत्याग्रह के प्रवर्तक क्रान्तिकारी महात्मा भगवानदीनजी की छोटी-बड़ी 8-10 पुस्तकें प्रकाशन ने प्रकाशित कीं। महात्मा भगवानदीन बाल मनोविज्ञान के विशेषज्ञ थे। ‘सत्य की खोज’ लगभग 200 पृष्ठ की बड़ी पुस्तक पहली बार सन् 1957 में छपी। ‘बालक अपनी प्रयोगशाला में’ पुस्तक अध्यापकों के लिए महत्त्वपूर्ण पुस्तक के रूप में प्रकाशित की गयी।
  • सन् 1958-59 की बात होगी। काशी स्टेशन के पीछे जी. टी. रोड और गंगा नदी के निकट रेलवे की जमीन राधाकृष्णजी बजाज की नजर में आयी। प्रयत्न करके वह जमीन रेलवे से खरीदी गयी। उस जमीन को समतल बनाकर भवन खड़े किये गये। सन् 1960 से 1965 के दौरान प्रकाशन प्रगति पर था। भूदान यज्ञ तथा पुस्तक-प्रकाशन में लगभग ३० कार्यकर्ता थे। जे. कृष्णमूर्ति की ‘कमेंट्री ऑन लिविंग’ पुस्तक के तीनों भागों का हिन्दी संस्करण प्रकाशित किया गया। बालकोबाजी के ‘गीता-तत्त्वबोध’ नामक बड़े ग्रंथ का प्रकाशन किया गया।
  • सन् 1959-70 में गांधी जन्म शताब्दी के अवसर पर राधाकृष्ण बजाज के कुशल कार्यदक्षता एवं अप्रतिम दृढ़ता से गांधी-विनोबा की करीब आठ सौ पृष्ठों की 5 पुस्तकों एवं एक हजार पृष्ठों की 7 पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। विनोबाजी ने विश्व के महत्त्वपूर्ण सभी धर्मों का गम्भीर अध्ययन किया। उन विशिष्ट ग्रंथों के सार-संक्षेप संपादित कर प्रकाशन ने प्रकाशित किये। पर जैन-धर्म का कोई एक सर्वमान्य ग्रंथ नहीं था। आखिर श्री जिनेन्द्र वर्णीजी नामक त्यागी-विरागी विद्वान् के सहयोग से ‘समणसुत्तं’ ग्रंथ तैयार हुआ। श्री राधाकृष्णजी बजाज ने सर्वोदय साहित्य और विनोबा के विचारों के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए रेलवे स्टेशनों पर सर्वोदय साहित्य के स्टाल खोलने में अपनी शक्ति लगायी।
प्रकाशन के संचालक का कायर्भार ग्रहण करने वाले व्यक्तियों की सूची इस प्रकार है-
  1. श्री राधाकृष्ण बजाज
  2. श्री सिद्धराज ढड्ढा
  3. श्री दत्तोवा दास्ताने
  4. श्री चुनीभाई वैद्य
  5. श्री कृष्णराज मेहता
  6. श्री नरेन्द्र भाई
  7. श्री तेजसिंह भाई
  8. श्री केशवभाई
  9. श्री चन्द्रिका प्रसाद पाण्डेय
  10. श्री विनय भाई
  11. श्री हेमदेव शर्मा
  12. श्री रामचन्द्र राही
  13. श्री अविनाश चन्द्र
  14. श्री रामधीरज भाई
  15. श्री आदित्य पटनायक
  16. श्री अशोक भारत
  17. श्री शिवविजय सिंह
  18. श्री अरविंद अंजुम
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