सर्व सेवा संघ

विचार, इतिहास और कार्य
1947 में देश आजाद हुआ। तब महात्मा गांधी ने सोचा कि देश को बनाने के लिये, सर्वोदयी समाज की स्थापना के लिए उन्हीं द्वारा संचालित भिन्न-भिन्न विषयों को लेकर कार्य करने वाली सभी अखिल भारत रचनात्मक संस्थाओं को एक शरीर के अवयवों की भांति इकट्ठा करें और नए संकल्प के साथ एकरस बनकर नया भारत गढ़ने के काम में जुट जाएं। 2 फरवरी 1948 को वर्धा में इसी उद्देश्य से बैठक बुलाई गई थी और उस बैठक में आने की तैयारी वे कर रहे थे, तभी 30 जनवरी को वे हमसे बिछुड़ गए।

गांधीजी की आकांक्षा को चरितार्थ करने के लिए उनके वरिष्ठ साथी आचार्य विनोबाजी, किशोरलालजी मश्रूवाला, डॉ. जे. सी. कुमारप्पा, आचार्य काकासाहेब कालेलकर, श्रीकृष्णदासजी जाजू, आर्यनायकम् दंपत्ती आदि ने मिलकर ‘अखिल भारत सर्व सेवा संघ’ नाम से मिलापी संघ अप्रैल 1948 में बनाया, जिसके जिम्मे रचनात्मक कार्य और स्वराज्य को दिशा देना, सहायता करना आदि काम आए। विनोबाजी व जयप्रकाशजी के मार्गदर्शन में सर्व सेवा संघ का कार्य चला। सर्व सेवा संघ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों का भारत बनाने की लगनपूर्वक कोशिश कर रहा है। निष्ठापूर्वक सैकड़ों कार्यकर्ता इस काम में लगे हैं।


सर्व सेवा संघ का उद्देश्य:
सर्व सेवा संघ का उद्देश्य सत्य और अहिंसा पर आधारित ऐसे समाज की स्थापना करना है, जिसमें जीवन मानवीय तथा लोकतांत्रिक मूल्यों से अनुप्राणित हो, जो शोषण, दमन, अनीति और अन्याय से मुक्त हो तथा जिसमें मानव-व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए पर्याप्त अवसर हो।

इस उद्देश्य की सिद्धि की दृष्टि से संघ राज्यसत्ता के लिए चलने वाली प्रतिद्वंद्विता से सर्वथा निर्लिप्त रहेगा। वह ऐसे लोकतंत्र के विकास के लिए प्रयत्नशील होगा, जिसका आधार दलीय राजनीति नहीं, बल्कि लोकनीति होगा। वह समाज में जाति, पंथ, सम्प्रदाय, वर्ण, वर्ग, लिंग, रंग, भाषा, देश आदि के कारण उत्पन्न होने वाले भेदभाव को स्वीकार नहीं करेगा। उसका प्रयत्न होगा कि एक ऐसी जीवन-पद्धति का विकास हो, जिसमें मानव-मानव के बीच निरंतर समता और साझेदारी बढ़े, वर्गों का निराकरण हो, पूंजी और श्रम का विरोध मिटे तथा विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत खादी, ग्रामोद्योग, खेती और पशुपालन जीविका के मुख्य साधन बनें।

कार्य : अपने अभी तक के जीवन में सर्व सेवा संघ ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में निम्न कार्य किए हैं :

1. भूदान-ग्रामदान, जीवन दान, कूपदान : 1949 में हुई चीन की क्रांति से प्रेरणा लेकर भारत के कई हिस्सों में और विशेषतया आंध्र के तेलंगाना क्षेत्र में भूमि के लिए मारकाट शुरू हुई थी। 1951 में विनोबाजी ने भूदान का कार्य उठाया और हजारों कार्यकर्ताओं ने उनके जैसी सालों पदयात्रा करके सात लाख किसानों से भूदान प्राप्त किया और चार लाख भूमिहीन गरीब मजदूरों को १५ लाख एकड़ जमीन बांटी। आदिवासी और हरिजनों को इसका विशेष लाभ मिला। भूदान की इस अद्भुत सफलता के कारण भारत के सभी प्रदेशों में भूमि-सिलींग कानून बनने में मदद पहुंची और कत्ल रुक गई। आगे चलकर भूदान का विकास ग्रामदान में हुआ और भारत के डेढ़ लाख गांवों ने ग्रामदान के विचार को सत्ता-संपत्ति का मोह छोड़कर इस कार्य के लिए अपने को आजीवन समर्पित किया है।

भारत में बांटने के लिए भूमि है नहीं, यह राज्यकर्ताओं के खयालात और भूमि का बंटवारा करने के लिए कत्ल करना अनिवार्य है, यह कम्युनिस्टों का विचार भूदान के कारण बदला जा सका। कत्ल और कानून से करुणा ज्यादा मानवीय और कारगर है, यह सिद्ध हुआ। किसान भूमिस्वामित्व नहीं छोड़ेगा, वह क्रांति का दुश्मन है, यह कम्युनिस्टों का सिद्धांत ग्रामदान ने गलत साबित किया। समझाने से किसान भूमि का स्वामित्व गांव को समर्पित कर सकते हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण ग्रामदान द्वारा दिखाई दिया। चीन का भारत के साथ सीमा-संघर्ष हुआ तब विनोबा ने कहा कि चीन का फौजी हमला हमारे जवानों द्वारा रोका जा सकता है, लेकिन उसका वैचारिक हमला भी है जो बंदूक से नहीं रोका जा सकता। विचार का जवाब हमेशा विचार से ही देना होगा। इसलिए उन्होंने ग्रामदान को ‘डिफेन्स मेजर’ कहा। भूदान में से ग्रामदान, ग्रामदान में से ग्राम-परिवार, ग्राम-स्वराज्य, यह विचार का सूत्र सर्व सेवा संघ ने देश के सामने रखा। हिंसा-शक्ति विरोधी, दंडशक्ति से (शासन) भिन्न, स्वतंत्र लोकशक्ति का उदय इस आंदोलन द्वारा हुआ। केवल अध्यात्म या केवल विज्ञान की उपासना अब नहीं चलेगी। विज्ञान और अध्यात्म की शादी होनी चाहिए और विज्ञान अध्यात्म के अंकुश में रहना चाहिए, तभी आदमी को गुलाम बनाने वाली आज की केन्द्रित अर्थव्यवस्था और केन्द्रित सत्ता की जंजीर टूटेगी, यह विचार सर्वोदय कार्यकर्ता 63 साल से देहातों में, शहरों में जाकर दे रहे हैं। दुनिया में भी अब इस विचार की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है। पूंजीवाद के दोषों को हटाने के लिए आया साम्यवाद खुद पीछे हट गया है। पूंजीवाद और साम्यवाद का विकल्प सर्वोदय ही हो सकता है। 1981 में 53 नोबेल परितोषिक विजेताओं ने भी एक साथ मिलकर कहा कि आज की मानवभक्षी केन्द्रितशासन व अर्थप्रणालि का विकल्प गांधी ने दिया है।

2. भाषिक, राजनैतिक, साम्प्रदायिक हिंसा के बीच शांति-कार्य : आजादी के दिनों में साम्प्रदायिक हिंसा की लपटों में भारत जलने लगा था। तब पाकिस्तान से आए हुए और बाद में बांगला देश की आजादी की लड़ाई के समय आए हुए विस्थापितों की सेवा के लिए कैंप चलाए गए।

बंगाल-असम, महाराष्ट्र-कर्नाटक आदि में भाषिक तनाव और आगजनी की घटनाओं के समय विभिन्न भाषिकों में मेल-मिलाप कराने का प्रयास संघ ने किया है।

बिहार में आया अकाल या बाढ़, आंध्र का समुद्री तूफान, महाराष्ट्र का कोयला और अभी का लातूर का भूकंप, पानशेत का बांध टूटना, गुजरात की बाढ़ में बह गए मोरवी आदि शहरों-गांवों के पीड़ितों की मदद की गई।

राष्ट्रभाषा को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्रीजी के कार्यकाल में दक्षिण भारत में तनाव पैदा हुआ, केन्द्रीय मंत्रियों के इस्तीफे से खतरा गहराता गया, तब विनोबाजी ने उपवास करके संकट टाला और उसमें से त्रिभाषी फार्मूला निकाला।

नागालैंड और कश्मीर के नेता भारत से नाराज थे, उनसे नित्य संपर्क रखकर शांति-मिशन द्वारा जयप्रकाशजी ने उन्हें भारत के अंतर्गत रहकर समस्या सुलझाने के लिए राजी कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

ग्रीस, साईप्रस और अफ्रीका के देशों में वांशिक दंगों के शमन के लिए शांति-सैनिक भेजे गए। बांगला देश के लोगों की आजादी की लड़ाई में न्याय दिलाने में अथक परिश्रम किए गए।

भारत-चीन संघर्ष के समय आपस में सुलह कराने के लिए भारत-चीन मैत्री-यात्रा शंकरराव देव के नेतृत्व में चली और नेफा क्षेत्र में भारत चीन की सरहद पर सेवा-केन्द्र स्थापित किए गए।

3. चंबल के डाकुओं का समर्पण : मुगल शासन, अंग्रेजी राज और आजादी के दिनों में भी चंबल के डाकू, सरकार और समाज के लिए सिरदर्द बने हुए थे। 1960 में विनोबाजी और बाद में जयप्रकाशजी के सामने कार्यकर्ताओं के अथक प्रयत्नों से 650 से अधिक डाकुओं ने आत्म-समर्पण किया। उन बागियों (डाकुओं) ने कोर्ट में अपने अपराध कबूल किए और सजा भुगतने के बाद शांत नागरिक जीवन अपनाया। इनको बसाने के काम में कार्यकर्ता लगे थे।

4. शराबबन्दी-गोवधबन्दी : भारत का आम समाज शराब और गोवध के खिलाफ है। संविधान में भी उनके लिए विशेष निर्देश दिए हैं। शराब-बन्दी के लिए कानून बने और बनाए गए कानूनों पर अमल कराने के लिए पूरे भारत में पिकेटिंग, सत्याग्रह के कार्यक्रम चले और आज भी चल रहे हैं। इस कारण पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों और महाराष्ट्र के गड़चिरोली जिले में कानून बने। देवनार (मुम्बई) में सालों से देश में गोवंश हत्या बंदी कानून बनाने के लिए अखंड सत्याग्रह चल रहा है जिसमें सर्व सेवा संघ ने समय-समय पर योगदान दे रहा है।

5. जंगल बचाव-कार्य : औद्योगीकरण के बढ़ते प्रभाव में आकर जंगलों की अवैध और अवैज्ञानिक कटाई चल रही है। उसे रोकने और पर्यावरण-संतुलन बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश के उत्तराखंड में, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र में कदम उठाए गए। इसी में से विश्वविख्यात ‘चिपको’ आंदोलन का जन्म हुआ।

6. महाजनों-शासकों के उत्पीड़न का विरोध : सत्ता दिनोंदिन केन्द्रित होते जाने से सरकारी अधिकारी, कर्मचारी और नेताओं के दमन का शिकार जनतंत्र में जनता को भी होना पड़ता है। आदिवासी और पिछड़े क्षेत्र में यह अन्याय विशेष पाया जाता है। इनके खिलाफ संघ के साथी कार्यकर्ता स्थानीय लोगों द्वारा चलाए जा रहे सत्याग्रह में साथ देते हैं। आपातकाल में कई कार्यकर्ताओं को इसीलिए कारावास भुगतना पड़ा है। महाराष्ट्र के धुलिया जिले में पांच हजार एकड़ जमीन आदिवासियों को साहूकार जमींदारों से छुड़वाकर दिलाई गई। ठाना और धुलिया जिले में कई हजार एकड़ जंगल-जमीन कानून का लाभ उठाकर आदिवासियों को दिलवा दी। महाराष्ट्र के इन जिलों के जैसे ही उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के गोविन्दपुर क्षेत्र में, बिहार के मुंगेर और चम्पारण जिले में मजदूरों को उचित मजदूरी दिलाई गई और भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास हुआ।

7. लोकतंत्र की रक्षा : 1974 में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाया। आपातकालीन तानाशाही के विरोध में सैकड़ों कार्यकर्ता जेल गए और तानाशाही प्रवृत्ति को हटाकर फिर से प्रजातांत्रिक शासन खड़ा करने का महान कार्य किया।

8. लोकहित के लिए चलाए आंदोलन :
गुजरात में कारगिल अमेरिकन कंपनी ने सतसौदा द्वीप खरीद कर उस पर अपना बंदरगाह निर्माण करके नमक बनाने की बड़ी योजना करने के लिए भारत सरकार से स्वीकृति ली थी। भारत और पाकिस्तान के संवेदनशील क्षेत्र में इस तरह की बाहरी हस्तक्षेप राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता था। भारत के नमक उत्पादकों के धंधे को भी ठेस पहुंची होती। यह ध्यान में लेकर जैसे गांधीजी के नमक सत्याग्रह के लिए दांडी यात्रा निकाली थी, उसी तरह श्री ठाकुरदासजी बंग के नेतृत्व में सर्वोदय कार्यकर्ताओं ने बापूजी द्वारा स्थापित साबरमती आश्रम से जनजागरण पदयात्रा निकाली और सत्याग्रह का ऐलान किया। आखिरकार कारगिल कंपनी ने अपनी योजना वापिस ली।

9. झींगा मछली (प्रान) प्रकल्प भूमि का क्षारीकरण :
दुनिया के अन्य देशों में (प्रान प्रकल्प) झींगा मछली उत्पादन के द्वारा समुद्र के किनारे की हजारों एकड़ जमीन बरबाद हो गई। तब भारत के पूर्वी किनारे पर हजारों एकड़ भूमि पर प्रान पकल्प बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा शुरु किये गये। तब तमिलनाड़ु के सर्वोदय कार्यकर्ताओं ने सत्यग्रह करके भूमि और भूगर्भजल प्रदूषित करने वाला यह काम बंद करवाया। सैंकड़ो लोग जेल गये। आखिरकार उच्च न्यायालय ने तथा अंत में उच्चतम न्यायालय ने प्रानप्रकल्चर प्रकल्पों पर पाबंदी लगाई।

10. ग्रामस्वराज्य – स्वायत ग्राम-व्यवस्था और विकेन्द्रित अर्थनीति ग्राम-स्वराज्य का बुनियादी आधार हैं हम सत्य और अहिंसा के साधनों से उस दिशा में प्रयत्नशील है।

11. लोकनीति – मतदाता-परिषदों का गठन-जनता के हाथ में सत्ता लोकनीति का मूल मंत्र है। मतदाता केवल मत न दे, बल्कि संसद और विधानसभाओं के लिए अपने उम्मीद्वार को भी खड़ा करे और प्रतिनिधियों पर बराबर अंकुश रखे। इसके लिए निर्वाचन-क्षेत्रों में मतदाता-परिषदें गठित हों, और चुनाव में लोक-उम्मीद्वार खड़े हों इसके लिए शिक्षण।

12. असरकारी खादी – शोषण और हिंसामुक्त विकेंद्रित अर्थरचना की लोकजीवन में बुनियाद डालने की दृष्टि से राज्याश्रय के बिना लोकाधारित स्वावलंबी खादी-ग्रामोद्योगों का विकास।

13. नयी खेती के प्रयोग – मानव, पशु-पक्षी, प्रकृति ही नहीं, पूरी धरती के लिए खतरा बन चुके रासायनिक खादों, दवाओं, केंद्रित राजनीति आदि से मुक्त सबका संरक्षण और पोषण करने वाली, प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित, विकेंद्रित जैविक खेती के प्रयोग।

14. प्रशिक्षण – उपरोक्त कार्यक्रमों के सफल बनाने के उद्देश्य से विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम सारे देश में चलाये जाते हैं। समय-समय पर जनसंपर्क एवं लोक जागृति हेतु पदयात्राएं एवं वाहन यात्राएं आयोजित की जाती हैं।

15. समर्पण और संगठन – ये लक्ष्य हैं जिनके लिए सर्व सेवा संघ समर्पित है। गांधीजी के दिये हुए सत्य-अहिंसा के मूल्य हमारी जीवन-निष्ठा हैं, रचनात्मक कार्य हमारा लोक-शिक्षण का साधन है और सत्याग्रह हमारा अस्त्र। इसलिए इन लक्ष्यों और निष्ठाओं का स्वीकार करने वाले लोकसेवक, संघ की बुनियादी इकाई है।
देशभर में फैले हजारों लोकसेवकों, सर्वोदय मंडलों एवं रचनात्मक संस्थानों का सम्मिलित रूप ही सर्व सेवा संघ है। राज्यों और जिलों में सर्वोदय मंडल है। स्थानीय स्तर पर जहां भी कम-से-कम 5 लोक-सेवक हैं, वहां प्राथमिक सर्वोदय मंडल है। प्राथमिक सर्वोदय मंडलों से मिलकर जिला तथा प्रांतीय सर्वोदय मंडलों को गठन होता है। इनके प्रतिनिधियों से मिलकर सर्व सेवा संघ बनता है। लोक सेवकों के अतिरिक्त देशभर में शांति और शुद्ध साधनों में विश्वास रखने वाले सर्वोदय-मित्र हैं।
संघ की एक कार्यसमिति है, जो देशभर में काम का संयोजन-संचालन करती है। प्रधान कार्यालय सेवाग्राम, वर्धा में है। संघ के साल में दो अधिवेशन होते हैं, तथा कार्यसमिति की समय समय पर बैठकें होती हैं।
वाराणसी में संघ का अपना प्रकाशन है जहां से न हानि न लाभ के आधार पर सर्वोदय-दर्शन, अध्यात्म, ग्रामस्वराज्य, प्रकृतिक चिकित्सा, गोसेवा आदि विभिन्न विषयों का साहित्य कई भाषाओं में प्रकाशित होता है। हिंदी पाक्षिक सर्वोदय जगत और अंग्रेजी साप्ताहिक विजिल मुख्यपत्र हैं।

16. सर्वोदय समाज – साध्य एवं साधनों की शुद्धि के माध्यम से सत्य अहिंसा पर आधारित, जात-पांत एवं शोषण से मुक्त समाज की स्थापन के उद्देश्य को मानने वाले सेवकों का भाईचारा सर्वोदय समाज के नाम से विनोबाजी ने 1948 में बनाया। ऐसे सेवकों के विचार विनिमय एवं आपसी संपर्क हेतु प्रतिवर्ष सर्वोदय समाज सम्मेलन होता है।

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