Description
उपनिषदों की महिमा अनेकों ने गायी है। कवि ने कहा है कि हिमालय जैसा पर्वत नहीं और उपनिषदों जैसी पुस्तक नहीं है। परंतु मेरी दृष्टि में उपनिषद पुस्तक है ही नहीं; वह तो एक प्रातिभ-दर्शन है। उस दर्शन को यद्यपि शब्दों में अंकित करने का प्रयत्न किया गया है, फिर भी शब्द लड़खड़ा गये हैं। परंतु निष्ठा जरूर प्रकट हुई है। उस निष्ठा को हृदय में भरकर, शब्दों की सहायता से शब्दों को दूर हटाकर अनुभव लिया जाये तभी उपनिषदों का बोध होता है।
विनोबा